Bechaini Shayari In Hindi | बेचैनी शायरी हिंदी में
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Bechaini Shayari
उदासी शाम तन्हाई कसक यादों की बेचैनी
मुझे सब सौंप कर सूरज उतर जाता है पानी में
उस की बेचैनी बढ़ाना चाहती हूँ
सुनिए कह कर चुप लगाना चाहती हूँ
घर में बेचैनी हो तो अगले सफर की सोचना
फिर सफर नाकाम हो जाए तो घर की सोचना
नावक ए नाज से मुश्किल है बचाना दिल का
दर्द उठ उठ के बताता है ठिकाना दिल का
मरते मरते हम को इक बेचैनी सी थी
एक पुराना दुश्मन था जो याद आया था
बता तू दिल के बचाने की कोई राह भी है
तिरी निगाह की नावक फगन पनाह भी है
अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
उस के होंटों पर चाहत का फूल खिला भी कितनी देर
बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की
सदियों जैसे दिन हैं रातें पत्थर की
हमें खबर थी बचाने का उस में यारा नहीं
सो हम भी डूब गए और उसे पुकारा नहीं
सारे तो नहीं जान बचाने में लगे हैं
कुछ घाव हमें जख्म लगाने में लगे हैं
हो सबब कुछ भी मिरे आँख बचाने का मगर
साफ कर दूँ कि नजर कम नहीं आता है मुझे
जमीर बेचने वाले वो तेरा सौदा गर
जमीर ही नहीं जात ओ सिफात ले के गया
तिरी निगाह से बचने में उम्र गुजरी है
उतर गया रग ए जाँ में ये नेश्तर फिर भी
उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
फिर यही लोग कहीं का नहीं रहने देते
और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख्वाब बेचे हैं
ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
अपने बच्चे बेचना इकबाल साजिद छोड़ दे
जेब खाली है अदम मय कर्ज पर मिलती नहीं
एक दो बोतल पे दीवाँ बेचने वाला हूँ मैं
हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
चरागों को हवाओं से बचाना चाहते हैं हम
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