Behad Shayari In Hindi | बेहद शायरी हिंदी में
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Behad Shayari
इश्क नाजुक मिजाज है बेहद
अक्ल का बोझ उठा नहीं सकता
चाँद चढ़ता देखना बेहद समुंदर पर मुनीर
देखना फिर बहर को उस की कशिश से जागता
बे जबानी तर्जुमान ए शौक बेहद हो तो हो
वर्ना पेश ए यार काम आती है तकरीरें कहीं
शौक ए बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वर्ना किस गाम मिरा खून ए तमन्ना न हुआ
कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत ए बे हद
कि बे गुनाह से अच्छा गुनाह गार रहा
कोई खबर ही न थी मर्ग ए जुस्तुजू की मुझे
जमीं फलाँग गया अपने शौक ए बेहद में
बस के नीचे कोई नहीं आता फिर भी
बस में बैठ के बेहद घबराता हूँ मैं
जो अर्जां है तो है उन की मता ए आबरू वर्ना
जरा सी चीज भी बेहद गिराँ है इस जमाने में
मैं जो हूँ जौन एलिया हूँ जनाब
इस का बेहद लिहाज कीजिएगा
आवाजों की भीड़ में इतने शोर शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है
दम के दम में दुनिया बदली भीड़ छटी कोहराम उठा
चलते चलते साँस रुकी और खत्म हुआ अफ्साना भी
भीड़ है बर सर ए बाजार कहीं और चलें
आ मिरे दिल मिरे गम ख्वार कहीं और चलें
हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
शहर की भीड़ में शामिल है अकेला पन भी
आज हर जेहन है तन्हाई का मारा देखो
दिल में वो भीड़ है कि जरा भी नहीं जगह
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर ए मक्तल
उसी की दीद को हम भी सुतून ए दार तक आए
फलक पे भीड़ लगी थी शिकस्ता आहों की
दुआ से पहले मुझे रास्ता बनाना पड़ा
भीड़ के खौफ से फिर घर की तरफ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
कुन फकाँ के भेद से मौला मुझे आगाह कर
कौन हूँ मैं गर यहाँ पर दूसरा कोई नहीं
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