Dimag Shayari In Hindi | दिमाग शायरी हिंदी में
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Dimag Shayari
दिमाग दे जो खुदा गुलशन ए मोहब्बत में
हर एक गुल से तिरे पैरहन की बू आए
ये कब खयाल में लाते हैं ताज ए शाही को
दिमाग अर्श पे है तेरे कम दिमागों का
दिमाग को कर रहा हूँ रौशन मैं दाग ए दिल के जला रहा हूँ
अब अपनी तारीक जिंदगी का नया सरापा बना रहा हूँ
भूल जावे साहिब ए इकबाल अपनी सर कशी
उस को दिखलावे अगर मेरी बद इकबाली दिमाग
दर्द ए सर में है किसे संदल लगाने का दिमाग
उस का घिसना और लगाना दर्द ए सर ये भी तो है
जुल्फ का हाल तक कभी न सुना
क्यूँ परेशाँ मिरा दिमाग हुआ
दिमाग अहल ए मोहब्बत का साथ देता नहीं
उसे कहो कि वो दिल के कहे में आ जाए
कोई दिमाग से कोई शरीर से हारा
में अपने हाथ की अंधी लकीर से हारा
दिल तो हो अच्छा नहीं है गर दिमाग
कुछ तो अस्बाब ए तमन्ना चाहिए
नाज ए बेजा उठाइए किस से
अब न वो दिल न वो दिमाग रहा
है यहाँ किस को दिमाग अंजुमन आराई का
अपने रहने को मकाँ चाहिए तन्हाई का
कभी न खाली मिला बू ए हम नफस से दिमाग
तमाम बाग में जैसे कोई छुपा हुआ है
जावे थी जासूसी ए मजनूँ को ता राहत न ले
वर्ना कब लैला को था सहरा में जाने का दिमाग
बुलबुल के कारोबार पे हैं खंदा हा ए गुल
कहते हैं जिस को इश्क खलल है दिमाग का
इंसान में क्या भरा हुआ है
होंटों से दिमाग तक सिले हैं
ये आँखें ये दिमाग ये जख्मों का घर बदन
सब महव ए ख्वाब हैं दिल ए बे ताब के सिवा
छेड़ नाहक न ऐ नसीम ए बहार
सैर ए गुल का यहाँ किसे है दिमाग
दिल्ली में आज भीक भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक दिमाग जिन्हें ताज ओ तख्त का
कभी दिमाग को खातिर में हम ने लाया नहीं
हम अहल ए दिल थे हमेशा रहे खसारे में
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