Fark Shayari In Hindi | फर्क शायरी हिंदी में
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Fark Shayari
खूब ओ जिश्त ए जहाँ का फर्क न पूछ
मौत जब आई सब बराबर था
दोनों जालिम हैं फर्क इतना है
आसमाँ पीर है जवाँ तू है
साकी मैं देखता हूँ जमीं आसमाँ का फर्क
अर्श ए बरीं में और तिरे आस्ताने में
जुनूँ में और खिरद में दर हकीकत फर्क इतना है
वो जेर ए दर है साकी और ये जेर ए दाम है साकी
अभी फर्क है आदमी आदमी में
अभी दूर है आदमी आदमी से
है आशिक ओ माशूक में ये फर्क कि महबूब
तस्वीर ए तफर्रुज है वो पुतला है अलम का
फर्क क्या मक्तल में और गुलजार में
ढाल में हैं फूल फल तलवार में
कुफ्र और इस्लाम में देखा तो नाजुक फर्क था
दैर में जो पाक था का बे में वो नापाक था
फकत जमान ओ मकाँ में जरा सा फर्क आया
जो एक मसअला ए दर्द था अभी तक है
हिन्दी में और उर्दू में फर्क है तो इतना
वो ख्वाब देखते हैं हम देखते हैं सपना
तसल्ली आप ने दी फर्क है हाँ दिल की हालत में
जो थम थम कर खलिश होती थी पैहम होती जाती है
अब कफस और गुलिस्ताँ में कोई फर्क नहीं
हम को खुशबू की तलब है ये सबा जानती है
हम में और परिंदों में फर्क सिर्फ इतना है
दस्त ओ पा मिले हम को बाल ओ पर परिंदों को
फर्क इतना है कि तू पर्दे में और मैं बे हिजाब
वर्ना मैं अक्स ए मुकम्मल हूँ तिरी तस्वीर का
जल्वा ओ दिल में फर्क नहीं जल्वे को ही अब दिल कहते हैं
यानी इश्क की हस्ती का आगाज तो है अंजाम नहीं
मोहब्बत और इबादत में फर्क तो है नाँ
सो छीन ली है तिरी दोस्ती मोहब्बत ने
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मकाम पे लाता चला गया
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