Ghatiya Shayari In Hindi | घटिया शायरी हिंदी में
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Ghatiya Shayari
मेरी हवस के अंदरूँ महरूमियाँ हैं दोस्त
वामाँदा ए बहार हूँ घटिया कहे सो हूँ
न कोई खुदा उसका न कोई भगवान होता है,
इस दुनिया में जो घटिया इन्सान होता है।
पहचान तब तक नहीं होती
जब तक कोई नुकसान नहीं होता,
घटिया इन्सान का अपना
कोई दीन-ओ-ईमान नहीं होता।
उसकी हरकतों से जग उसे जान जायेगा,
घटिया आदमी कब तक अपनी पहचान छिपायेगा।
फितरत जो उनकी पहचान लेता है
घटिया लोगों को इज्ज़त कौन देता है?
न त्योहारों पर न मुसीबत में
घटिया लोग मिलते हैं तो बस
अपनी जरूरत में
होते घटिया लोग हैं, आस्तीन के सांप,
राम-राम जपते रहें, करते रहते पाप।
पड़ती है जरूरत तो मुंह पर
बेशर्मी का लिबास डाल लेते हैं,
मतलब निकालने के लिए लोग
रिश्ते तक निकाल लेते हैं।
दवाओं की कमी है रोगों की कमी नहीं है,
ये दुनिया है साहब
यहाँ घटिया लोगों की कमी नहीं है।
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