Kafila Shayari In Hindi | काफिला शायरी हिंदी में
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Kafila Shayari
मुहताज नहीं काफिला आवाज ए दरा का
सीधी है रह ए बुत कदा एहसान खुदा का
वक्त ए रवा रवी है उठे काफिला के लोग
साकी चले पियाला जहाँ तक कि बस चले
मजरूह काफिले की मिरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहजन के साथ
वहीं बहार ब कफ काफिले लपक के चले
जहाँ जहाँ तिरे नक्श ए कदम उभरते रहे
काफिला जाता है सागर की तरफ रिंदों का
है मगर कुलकुल ए मीना जरस ए जाम ए शराब
शामिल हूँ काफिले में मगर सर में धुँद है
शायद है कोई राह जुदा भी मिरे लिए
काफिले खुद सँभल सँभल के बढ़े
जब कोई मीर ए कारवाँ न रहा
इस तरफ से गुजरे थे काफिले बहारों के
आज तक सुलगते हैं जख्म रहगुजारों के
गुजरते जा रहे हैं काफिले तू ही जरा रुक जा
गुबार ए राह तेरे साथ चलना चाहता हूँ मैं
खुशबू का काफिला ये बहारों का सिलसिला
पहुँचा है शहर तक तो मिरे घर भी आएगा
ये काफिले यादों के कहीं खो गए होते
इक पल भी अगर भूल से हम सो गए होते
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि काफिला क्यूँ लुटा
मुझे रहजनों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है
हम काफिले से बिछड़े हुए हैं मगर नबील
इक रास्ता अलग से निकाले हुए तो हैं
हम भी जरस की तरह तो इस काफिले के साथ
नाले जो कुछ बिसात में थे सो सुना चले
काफिले रात को आते थे उधर जान के आग
दश्त ए गुर्बत में जिधर ऐ दिल ए सोजाँ हम थे
भटका फिरे है मजनूँ लैला के काफिले में
ये पूछता कि यारो महमिल किधर गया है
मौसम ए गुल का मगर काफिला जाता है कि आज
सारे गुंचों से जो आवाज ए जरस आती है
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