Katil Shayari In Hindi | कातिल शायरी हिंदी में
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Katil Shayari
कातिल ने ब अद ए कत्ल मिरे मुस्कुरा दिया
क्या खूब खूँ बहा के मुझे खूँ बहा दिया
दौर ए हयात आएगा कातिल कजा के ब अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब अद
क्या मस्लहत शनास था वो आदमी कतील
मजबूरियों का जिस ने वफा नाम रख दिया
तर्क ए वफा के ब अद ये उस की अदा कतील
मुझ को सताए कोई तो उस को बुरा लगे
शैख कातिल को मसीहा कह गए
मोहतरम की बात को झुटलाएँ क्या
वही कातिल वही शाहिद वही मुंसिफ ठहरे
अकरबा मेरे करें कत्ल का दावा किस पर
निगाहें इस कदर कातिल कि उफ उफ
अदाएँ इस कदर प्यारी कि तौबा
कातिल को रौशनी में दिखाई दिया न मैं
ऐसी चमक थी खंजर ए बुर्रां में बच गया
दुश्मन ए जाँ हैं सभी सारे के सारे कातिल
तू भी इस भीड़ में कुछ देर ठहर जा ऐ दिल
जब लगें जख्म तो कातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए
वही कातिल वही मुंसिफ अदालत उस की वो शाहिद
बहुत से फैसलों में अब तरफ दारी भी होती है
सब ने माना मरने वाला दहशत गर्द और कातिल था
माँ ने फिर भी कब्र पे उस की राज दुलारा लिक्खा था
कातिल की सारी साजिशें नाकाम ही रहीं
चेहरा कुछ और खिल उठा जहराब गर पिया
अहल ए महशर देख लूँ कातिल को तो पहचान लूँ
भोली भाली शक्ल थी और कुछ भला सा नाम था
लाश कातिल ने खुली फेंक दी चौराहे पर
देखने वाला कोई घर से न बाहर निकला
अपने कातिल की जेहानत से परेशान हूँ मैं
रोज इक मौत नए तर्ज की ईजाद करे
हुस्न काफिर था अदा कातिल थी बातें सेहर थीं
और तो सब कुछ था लेकिन रस्म ए दिलदारी न थी
रहे न जान तो कातिल को खूँ बहा दीजे
कटे जबान तो खंजर को मरहबा कहिए
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