Khof Shayari In Hindi | खोफ शायरी हिंदी में
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Khof Shayari
दोनों के दिल में खौफ था मैदान ए जंग में
दोनों का खौफ फासला था दरमियान का
इक दूसरे से खौफ की शिद्दत थी इस कदर
कल रात अपने आप से मैं खुद लिपट गया
दुश्मनों की जफा का खौफ नहीं
दोस्तों की वफा से डरते हैं
उधर शर्म हाइल इधर खौफ माने
न वो देखते हैं न हम देखते हैं
बस एक खौफ था जिंदा तिरी जुदाई का
मिरा वो आखिरी दुश्मन भी आज मारा गया
बे नाम से इक खौफ से दिल क्यूँ है परेशाँ
जब तय है कि कुछ वक्त से पहले नहीं होगा
दिलों से खौफ निकलता नहीं अजाबों का
जमीं ने ओढ़ लिए सर पर आसमाँ फिर से
खौफ गर्काब हो गया फैसल
अब समुंदर पे चल रहा हूँ मैं
परिंद क्यूँ मिरी शाखों से खौफ खाते हैं
कि इक दरख्त हूँ और साया दार मैं भी हूँ
जाला बारी से खौफ आता है
उन की आमद कहीं न टल जाए
इस खौफ में कि खुद न भटक जाएँ राह में
भटके हुओं को राह दिखाता नहीं कोई
इक खौफ सा दरख्तों पे तारी था रात भर
पत्ते लरज रहे थे हवा के बगैर भी
इक खौफ जदा सा शख्स घर तक
पहुँचा कई रास्तों में बट कर
क्या क्या दिलों का खौफ छुपाना पड़ा हमें
खुद डर गए तो सब को डराना पड़ा हमें
हादसों के खौफ से एहसास की हद में न था
वर्ना नफ्स ए मुतमइन सफ्फाक होता गालिबन
फितरत में आदमी की है मुबहम सा एक खौफ
उस खौफ का किसी ने खुदा नाम रख दिया
खौफ ओ दहशत से लब नहीं खुलते
वर्ना कातिल मिरी निगाह में है
हमारे खौफ की खल्लाकियाँ खुदा की पनाह
वो बिजलियाँ हैं नजर में जो आसमाँ में नहीं
अब अंधेरों में जो हम खौफ जदा बैठे हैं
क्या कहें खुद ही चरागों को बुझा बैठे हैं
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