Paraya Shayari In Hindi | पराया शायरी हिंदी में
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Paraya Shayari
कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
छोड़ जमाना तेरा भी है मेरा भी
कौन अपना है यहाँ कौन पराया कहिए
कौन देता है भला दुख में सहारा कहिए
खून अपना हो या पराया हो
नस्ल ए आदम का खून है आखिर
यही सोच कर इक्तिफा चार पर कर गए शैख जी
मिलेंगी वहाँ उन को हूर और परियाँ वगैरा वगैरा
जो हो सका न मिरा उस को भूल जाऊँ मैं
पराई आग में क्यूँ उँगलियाँ जलाऊँ मैं
बिछड़ के तुझ से अजब हाल हो गया मेरा
तमाम शहर पराया दिखाई देता है
ये अपने दिल की लगी को बुझाने आते हैं
पराई आग में जलते नहीं हैं परवाने
परियों ऐसा रूप है जिस का लड़कों ऐसा नाँव
सारे धंदे छोड़ छाड़ के चलिए उस के गाँव
पराए दर्द में होता नहीं शरीक कोई
गमों के बोझ को खुद आप ढोना पड़ता है
सबक मिला है ये अपनों का तजरबा कर के
वो लोग फिर भी गनीमत हैं जो पराए हैं
मेरा अज्म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नहीं
मुझे खौफ आतिश ए गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे
क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता
हालाँकि यहाँ अपने पराए भी वही हैं
रिंद ए खराब हाल को जाहिद न छेड़ तू
तुझ को पराई क्या पड़ी अपनी नबेड़ तू
कर के दफ्न अपने पराए चल दिए
बेकसी का कब्र पर मातम रहा
इस्लाम में ये कैसा इंकार कुफ्र से है
तस्बीह में पिरोए जुन्नार है तअ ज्जुब
जबाँ से बात निकली और पराई हो गई सच है
अबस अशआर को करते हैं हम तश्हीर पहले से
इस लिए आरजू छुपाई है
मुँह से निकली हुई पराई है
दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
जंगलों में मुसाफिर भटक जाएँगे
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