Sathi Shayari In Hindi | साथी शायरी हिंदी में
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Sathi Shayari
दयार ए नूर में तीरा शबों का साथी हो
कोई तो हो जो मिरी वहशतों का साथी हो
गम हो कि खुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है हँसना है न रोना है
ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा
मैं अपनी वहशत के मकबरे से नई तमन्ना के ख्वाब देखूँ
इक हुस्न ए तसव्वुर है जो जीस्त का साथी है
वो कोई भी मंजिल हो हम लोग नहीं तन्हा
तुम मिरी वहशतों के साथी थे
कोई आसान था तुम्हें खोना?
हकीकतें तो मिरे रोज ओ शब की साथी हैं
मैं रोज ओ शब की हकीकत बदलना चाहती हूँ
ओ पिछली रुत के साथी
अब के बरस मैं तन्हा हूँ
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
काम ही जब नहीं आते हो तो किस काम के तुम
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए
मैं जिंदगी के नाज उठाने में रह गया
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
सब चाक दिलों के सिल जाएँ कोई ऐसा काम करो वाली
पीछे छूटे साथी मुझ को याद आ जाते हैं
वर्ना दौड़ में सब से आगे हो सकता हूँ मैं
उस से पूछो अजाब रस्तों का
जिस का साथी सफर में बिछड़ा है
वो मेरे नाम की निस्बत से मो तबर ठहरे
गली गली मिरी रुस्वाइयों का साथी हो
तुझ से बिछड़े गाँव छूटा शहर में आ कर बसे
तज दिए सब संगी साथी त्याग डाला देस भी
कुछ गौर का जौहर नहीं खुद फहमी में हैराँ हैं
इस अस्र के फाजिल सब सतही हैं जूँ आईना
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