यूं ही तन्हाई में हम अपने दिल को सज़ा देते हैं,
नाम लिखते हैं तेरा लिख कर मिटा देतें हैं.
कितनी अजीब है इस शहर की तन्हाई भी,
हजारों लोग हैं मगर कोई उस जैसा नहीं है.
मुझे तन्हाई की आदत है,
मेरी बात छोडो, तुम बताओ कैसी हो ?
ए मेरे दिल, कभी तीसरे की उम्मीद भी ना किया कर ,
सिर्फ तुम और मैं ही हैं इस दश्त-ए-तन्हाई में
रिश्ते तो नहीं रिश्तों की परछाई मिली,
ये कैसी भीङ है बस यहाँ तन्हाई मिली
मेरा और उस चाँद का मुकद्दर एक जैसा है,
वो तारों में तन्हा है और मैं हजारों में तन्हा